यह घटना तब की है 6 मार्च 1752 AD, लाहौर (वर्तमान में पाकिस्तान) के गवर्नर मुईन उल मालिक, जिसे मीर मन्नू के नाम से भी जाना जाता है, ने उस क्षेत्र के सिखों को जान से मारने और उनकी छोटी जवान कुंवारी बेटियों को जिहादियों में बांटने का आदेश दिया | औरतों और बच्चों की सजा दूसरी तय की जानी थी जिसके लिए उन्हें भूखे प्यासे लाहौर के कारागार में बंद रखा गया था | औरतों को इस्लाम कबूल करने अथवा ना करने की सूरत में गम्भीर परिणाम भुगतने की सजा सुनाई गयी | जब इन औरतों ने मौत को सामने देखकर भी झुकना स्वीकार नहीं किया तब इस मुस्लिम सैनकों ने उनके 300 मासूम बच्चों की हत्या कर दी और उनकी लाशों को भालों की नोक पर टांग दिया गया। यही नहीं, उन हैवानों ने बच्चों की अंतड़ियां काट कर शरीर के दूसरे हिस्से भी बाहर निकाल दिए और उनकी माला बनाकर उन माताओं के गले में पहना दिया।
एक के बाद एक, हर सिख महिला ने मुसलमानों के ऐसे नृशंश अत्याचार सहे, लेकिन किसी ने भी उनके आगे झुककर इस्लाम स्वीकार नहीं किया | यह एक चमत्कार ही कहा जायेगा, जब तक वे मुग़ल सैनिक इन औरतों की हत्या कर पाते, सिख घुड़सवार अकालियों ने 4 नवंबर 1753 को हमला कर मीर मन्नू को मार डाला और इन महिलाओं को बचाने में कामयाब हो गए | पूरे पंजाब क्षेत्र में मुगलों द्वारा ऐसे घिनौने कार्यों के हज़ारों उदाहरण मिल जायेंगे जो सिखों ने नहीं बल्कि खुद मुग़ल इतिहासकारों ने लिखे हैं | इनमें से एक नूर अहमद चिस्ती लिखता है, ” मीर मन्नू ने एक मुस्लिम त्यौहार के दिन बहादुरी से 1100 सिखों का सर, धड़ से अलग कर दिया था।”
हैरानी की बात यह है, इन घटनाओं के दो सदियाँ बीत जाने के बाद भी इराक और सीरिया जैसे देशों में ये मुसलमान हज़ारों की संख्या में यहूदी औरतों और बच्चों को मार रहे हैं। ये मुसलमान दूसरे धर्म के लोगों को काफिर कहते हैं और खुद के द्वारा की जाने वाली हत्याओं को भी कुरान ए शरीफ से जोड़ देते हैं | मीर मन्नू ने जिन औरतों के बच्चों की हत्या की थी वे माएं क्या चाहती तो इस्लाम स्वीकार नहीं कर सकती थीं ? वे औरतें सिख धर्म को लेकर अंधी नहीं थी जिसकी वजह से उन्हें अपने बच्चों को खोना पड़ा। उन्होंने बलिदान की जो मिसाल दी वह इतिहास में सिख धर्म के सिद्धांतों की रक्षा के लिए किया गया सबसे बड़ा संघर्ष है जिसमे सैकड़ों जाने गंवानी पड़ीं थी
सिखों ने जो संघर्ष किया अथवा बलिदान दिया उसका एकमात्र लक्ष्य किसी भी सूरत में भारत में इस्लाम धर्म के प्रसार को रोकना था | उस ज़माने में भी सिख, इस्लाम के खतरनाक इरादों को मानवता के प्रति नफरत की भावना को समझ चुके थे | इस्लाम के घृणा भरे विचारों को रोकने का एकमात्र जरिया, किसी भी सूरत में इस्लाम को स्वीकार नहीं करना था, जो उन औरतों ने किया | इस्लामिक जिहाद के आगे दुनिया की कई ताकतवर सभ्यताएं भी दम तोड़ चुकी थीं | अगर भारत ने वैसा प्रतिरोध नहीं दिखाया होता तो अब तक या तो सारे काफिर मार दिए गए होते या इस्लाम में धर्मान्तरित किये जा चुके होते | भारत के कई दूसरे लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए इस्लाम को स्वीकार कर लिया और चोरी चुपके, घर के अंदर छिपकर हिन्दू या दूसरे धर्मों का निर्वाह किया करते थे |
समय के साथ इन छिपे हुए “काफिरों” ने इस्लाम में अपनी आस्था ज्यादा बढ़ा ली और आगे चलकर पाकिस्तान को जन्म दिया, वह देश जो आज दुनिया का सबसे बड़ा आंतकवाद उत्पादक देश है | हालाँकि हिन्दू से धर्मांतरित हुए पाकिस्तानी मुसलमान, कई पीढ़ियों तक होली दीवाली जैसे हिन्दू त्यौहार मनाते रहे और कई पाकिस्तानी आज भी हिन्दू सरनेम लगते हुए देखे जा सकते हैं | यदि कोई हिन्दू अपना धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बनता है तो ये मुसलमान ख़ुशी के मारे ऐसा शोर मचाते हैं मानों इस्लाम के सच्चे होने का प्रमाण दे रहे हों |
यह उन औरतों के त्याग और बलिदान का ही परिणाम है कि जो पंजाब मुगलों के साम्राज्य और उनके आक्रमणों से सबसे ज्यादा प्रभावित था, सं 1800 तक महाराजा रणजीत सिंह द्वारा शासित हो गया | रणजीत सिंह ने जिहाद के नाम पर बनायीं गयी मस्जिदों को तोड़कर तथा अज़ान के समय सड़कों पर होने वाले मुसलमानों के मार्च पर रोक लगाकर भारत में इस्लाम के प्रसार को रोक दिया | यह उन्हीं की देन है कि आज आधे से ज्यादा पंजाब, या यूँ कहें तो उत्तर भारत में इस्लाम बिलकुल भी नहीं है |
Post a Comment