देबजानी पाटीकर,मालीगांव। “अहिंसा भारत का
गौरव है। मैं इसी गौरव का हमेशा से अनुसरण करता हूं।
यह ऐतिहासिक सत्य है कि भारत हमारा गुरु है। जबकि विश्व में आपसी भाईचारा
को प्रगाढ़ करने में भारतीय ज्ञान विशेष सहायक है। ये बातें रविवार को
तिब्बत के निर्वासित व प्रशासक बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने कही।”- दलाई लामा
दलाई लामा असम के दो दिवसीय दौरे के दूसरे दिन शनिवार की सुबह राजधानी गुवाहाटी में स्थित गौहाटी विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में हिस्सा लेते हुए अपनी आत्म जीवनी के असमिया संस्करण का विमोचन करने पहुंचे थे। तिब्बती धर्म गुरु की आत्म जीवनी का असमिया संस्करण का नाम “मोर देश और मोर मानूह (माई लैंड एंड माई पिपुल है।”
उन्होंने कहा कि भारत की पांच हजार वर्ष पुरानी सभ्यता आज भी अपरिवर्तनीय है। परिवर्तन होने के बावजूद भी भारत की मूल आत्मा अभी भी अपनी जगह पर कायम है। यही कारण है कि यह अपने में सभी को समेटे हुए है। सभी धर्मों के गुरुओं ने प्रेम, करुणा व प्रेम का संदेश दिया है। मानव समाज को एकजुट रखने के लिए इन्हीं को साथ लेकर चलना होगा।
उन्होंने इस मौके पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए आधुनिक समय में प्राचीन भारतीय प्रवक्ता के रूप में अपने आपको प्रतिपादित किया। उन्होंने कहा कि नैतिकता के आवेग के सामने कोई युक्ति सही नहीं है। हालांकि प्रत्येक आवेग के साथ कुछ अच्छे तथ्य भी होते हैं। धर्मगुरु ने कहा कि सामाजिक जीव होने के नाते हमारा सुख दूसरे के ऊपर निर्भर है। हमें वर्ण व्यवस्था में परिवर्तन को समझना होगा, क्योंकि भू-स्वामियों ने गरीबों का शोषण करने के लिए इस व्यवस्था को बनाया था। उन्होंने पर्यावरण को सुरक्षित रखने की बात कही।
दलाई लामा ने कहा कि मैं कभी भी स्वयं को दलाई लामा के रूप में नहीं देखता हूं। मैं सर्वसाधरण का कभी विरोध नहीं करता। ऐसे में यह ऐतिहासिक सत्य है कि भारत हमारा गुरु है। इसको स्वीकार करना चाहिए। भारतीय ज्ञान विश्व में शांति और सौहार्द कायम करने में मददगार है। इसका भरपूर उपयोग करना चाहिए। ज्ञात हो कि दलाई लामा का दोपहर बाद असम सरकार की ओर से आयोजित पांच दिवसीय नमामि ब्रह्मपुत्र महोत्सव में भी हिस्सा लेने का कार्यक्रम है। दलाई लामा की आत्म जीवनी के असमिया संस्करण “मोर देश और मोर मानूह (माई लैंड एंड माई पिपुल)” का प्रकाशन लायर्स बुक स्टाल ने किया है। दलाई लामा की पहली आत्म जीवनी का यह असमिया संस्करण है।
इस मौके पर उन्होंने उपस्थित लोगों के साथ सीधा संवाद करते हुए सभी तरह के प्रश्नों का उत्तर दिया। उन्होंने भारत की बढ़ती आबादी पर चिंता जताते हुए कहा कि शिक्षा का प्रसार व प्रचार करना चाहिए। लोगों से मेडिटेशन करने की सलाह दी। महिलाओं के संबंध में कहा कि महिलाएं मानवीयता के क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभाती हैं। इसका ज्ञान मुझे मेरी मां से मिला है। महिलाओं की आंतरिक सुंदरता पर जोर देते हुए कहा कि वे समाज को एकजुट रखने में पूरी तरह से सक्षम हैं। इस मौके पर गौविवि के कुलपति डा. मृदुल हजारिका, रजिस्टार एसके नाथ, चेयरमैन लायर्स बुक स्टाल के जतीन हजारिका, प्रोपराइटर भास्कर बरुवा, अनुवादक इंद्राणी लस्कर, केके हैंडिक विवि के रितुमणि बरकाकति आदि मौजूद थीं।
दलाई लामा असम के दो दिवसीय दौरे के दूसरे दिन शनिवार की सुबह राजधानी गुवाहाटी में स्थित गौहाटी विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में हिस्सा लेते हुए अपनी आत्म जीवनी के असमिया संस्करण का विमोचन करने पहुंचे थे। तिब्बती धर्म गुरु की आत्म जीवनी का असमिया संस्करण का नाम “मोर देश और मोर मानूह (माई लैंड एंड माई पिपुल है।”
उन्होंने कहा कि भारत की पांच हजार वर्ष पुरानी सभ्यता आज भी अपरिवर्तनीय है। परिवर्तन होने के बावजूद भी भारत की मूल आत्मा अभी भी अपनी जगह पर कायम है। यही कारण है कि यह अपने में सभी को समेटे हुए है। सभी धर्मों के गुरुओं ने प्रेम, करुणा व प्रेम का संदेश दिया है। मानव समाज को एकजुट रखने के लिए इन्हीं को साथ लेकर चलना होगा।
उन्होंने इस मौके पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए आधुनिक समय में प्राचीन भारतीय प्रवक्ता के रूप में अपने आपको प्रतिपादित किया। उन्होंने कहा कि नैतिकता के आवेग के सामने कोई युक्ति सही नहीं है। हालांकि प्रत्येक आवेग के साथ कुछ अच्छे तथ्य भी होते हैं। धर्मगुरु ने कहा कि सामाजिक जीव होने के नाते हमारा सुख दूसरे के ऊपर निर्भर है। हमें वर्ण व्यवस्था में परिवर्तन को समझना होगा, क्योंकि भू-स्वामियों ने गरीबों का शोषण करने के लिए इस व्यवस्था को बनाया था। उन्होंने पर्यावरण को सुरक्षित रखने की बात कही।
दलाई लामा ने कहा कि मैं कभी भी स्वयं को दलाई लामा के रूप में नहीं देखता हूं। मैं सर्वसाधरण का कभी विरोध नहीं करता। ऐसे में यह ऐतिहासिक सत्य है कि भारत हमारा गुरु है। इसको स्वीकार करना चाहिए। भारतीय ज्ञान विश्व में शांति और सौहार्द कायम करने में मददगार है। इसका भरपूर उपयोग करना चाहिए। ज्ञात हो कि दलाई लामा का दोपहर बाद असम सरकार की ओर से आयोजित पांच दिवसीय नमामि ब्रह्मपुत्र महोत्सव में भी हिस्सा लेने का कार्यक्रम है। दलाई लामा की आत्म जीवनी के असमिया संस्करण “मोर देश और मोर मानूह (माई लैंड एंड माई पिपुल)” का प्रकाशन लायर्स बुक स्टाल ने किया है। दलाई लामा की पहली आत्म जीवनी का यह असमिया संस्करण है।
इस मौके पर उन्होंने उपस्थित लोगों के साथ सीधा संवाद करते हुए सभी तरह के प्रश्नों का उत्तर दिया। उन्होंने भारत की बढ़ती आबादी पर चिंता जताते हुए कहा कि शिक्षा का प्रसार व प्रचार करना चाहिए। लोगों से मेडिटेशन करने की सलाह दी। महिलाओं के संबंध में कहा कि महिलाएं मानवीयता के क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभाती हैं। इसका ज्ञान मुझे मेरी मां से मिला है। महिलाओं की आंतरिक सुंदरता पर जोर देते हुए कहा कि वे समाज को एकजुट रखने में पूरी तरह से सक्षम हैं। इस मौके पर गौविवि के कुलपति डा. मृदुल हजारिका, रजिस्टार एसके नाथ, चेयरमैन लायर्स बुक स्टाल के जतीन हजारिका, प्रोपराइटर भास्कर बरुवा, अनुवादक इंद्राणी लस्कर, केके हैंडिक विवि के रितुमणि बरकाकति आदि मौजूद थीं।
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