जाट समुदाय के हजारों लोग आज जंतर-मंतर पर धरना देने के लिए इकट्ठा हुए हैं। इनकी मांग है कि इन्हें सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण दिया जाए। इस विरोध प्रदर्शन में हरियाणा, दिल्ली, यूपी, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और मध्यप्रदेश से जाट समुदाय के लोगों ने हिस्सा लिया है। बुधवार को जाट समुदाय ने असहयोग आंदोलन के तहत अपने लोगों से बिजली तथा पानी के बिल का भुगतान न करने तथा राष्ट्रीय राजधानी को दूध तथा अन्य जरूरी चीजें जैसे सब्जियां आदि की आपूर्ति बंद करने को कहा गया था।
असहयोग आंदोलन की शुरुआत करते हुए जाट नेताओं ने कहा कि पूरे हरियाणा में जाट कहीं भी बिजली-पानी का बिल नहीं जमा करेंगे और न बैंक का लोन चुकाएंगे। इसके साथ ही जाट अपनी मांगों को लेकर राष्‍ट्रपति को ज्ञापन देने वाले है। दिल्ली में आंदोलन के बारे पूछने पर यशपाल मलिक ने कहा, ’33 दिन से 10 लाख से ज़्यादा लोग धरने पर बैठे हैं। जब उससे कोई हल नहीं निकला तो हमें मजबूरन दिल्ली में प्रदर्शन कर घेराव की रणनीति घोषित करनी पड़ी।’

वहीं इस मामले पर राजनीति भी तेज भी हो गई है। इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) के नेता अभय सिंह चौटाला ने कहा कि, ‘कांग्रेस और बीजेपी हरियाणा में जाटों को सरकारी नौकरियों और सरकारी संस्थानों में आरक्षण पर राजनीति करने का प्रयास कर रही हैं। राज्य की बीजेपी सरकार जाट समुदाय की मांगों को पूरा करने में विफल रही है, जबकि उसने पिछले साल इस पर सहमति जताई थी।’

जाट नेता आरक्षण के साथ-साथ मांग कर रहे हैं कि पिछले साल जाट आंदोलन के दौरान मारे गए लोगों के घर में से किसी को नौकरी, आंदोलन में घायल हुए लोगों को मुआवजा मिले। वहीं आंदोलन के दौरान दर्ज किए गए केस को वापस लिया जाए। पिछले साल हुए जाट आंदोलन के दौरान हिंसा में 30 लोग से ज्यादा लोग मारे गए थे वहीं 200 से ज्यादा घायल हो गए थे। इतना ही नहीं आंदोलन के दौरान हजारों करोड़ की संपत्ति का नुकसान भी हुआ था।

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