इंसान कितना भी आगे क्यों न निकल जाए, पर प्राकृतिक शक्तियों तक वो पहुंच नहीं सकता। कुछ कारनामें ऐसे भी हुए हैं, जिनपर कोई विश्वास तक नहीं कर सकता। पर वो हुए हैं, इसलिए लोगों को मानना पड़ता है। ऐसी ही एक चमत्कारिक जगह है राजस्थान में, जिसपर हजारों तोप के गोले बरसाए गए, पर उसका कुछ नहीं बिगड़ा।

जी हां जैसलमेर में भारत-पाकिस्ताान सीमा के पास स्थित तनोट राय माता मंदिर में 1965 और 1971 की लड़ाई के दौरान पाकिस्तारन द्वारा कई बार बम फेंके गए लेकिन हर बार उसे असफलता ही हाथ लगी। आज भी मंदिर के संग्रहालय में पाकिस्तान द्वारा दागे गए जीवित बम रखे हुए हैं।
इंसानों के बनाए हथियारों से भगवान को नुकसान पहुंचाने का शायद ही कोई दुस्सा हस कर सकता है। ऐसी हिमाकत पाकिस्तानन ने की थी वो भी एक-दो नहीं बल्कि हजारों बार, लेकिन हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी। जी हां, जैसलमेर के थार रेगिस्तान में 120 किमी. दूर सीमा के पास स्थित सिद्ध तनोट राय माता मंदिर से भारत-पाकिस्तान युद्ध की कई यादें जुड़ी हुई हैं।
राजस्थान के जैसलमेर क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना को परास्त करने में तनोट माता की भूमिका बड़ी अहम मानी जाती है। यहां तक मान्यता यह है कि युद्ध के दौरान तनोट राय माता ने भारतीय सैनिकों की मदद की इसके चलते ही पाकिस्तानी सेना को पीछे हटना पड़ा।
साल 1965 में हुए भारत-पाक युद्ध के दौरान 17 से 19 नवंबर तक पाकिस्तान की ओर से तनोट राय माता मंदिर पर भारी बमबारी की गई। दुश्मन की तोप जबर्दस्त आग उगलती रहीं। लड़ाई के दौरान पाकिस्तान की तरफ से गिराए गए करीब 3000 बम भी इस मंदिर में खरोच तक नहीं ला सके, यहां तक कि मंदिर परिसर में गिरे 450 बम तो फटे भी नहीं।
माना जाता है कि तनोट माता के आशीर्वाद से ही ऐसा हुआ। उस दौरान तनोट राय माता की रक्षा के लिए मेजर जय सिंह की कमांड में 13 ग्रेनेडियर की एक कंपनी और सीमा सुरक्षा बल की दो कंपनियां दुश्मन की पूरी ब्रिगेड का सामना कर रही थीं।
कब्जा करने के उद्देश्य से पाकिस्तान ने भारत के इस हिस्से पर जबर्दस्त हमले किए लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली। अब तक गुमनाम रहा यह स्थान युद्ध के बाद प्रसिद्ध हो गया। ज्ञात हो कि पाकिस्ताएन सेना 4 किमी. अंदर तक भारतीय सीमा में घुस आई थी। लेकिन भारतीय सेना ने जवाबी हमले में पाकिस्तानी सेना को काफी नुकसान पहुंचाया और वह पीछे लौट गई।
माता का मन्दिर जो अब तक सुरक्षा बलों का कवच बना रहा, युद्ध समाप्त् होने पर सुरक्षा बल इसका कवच बन गए। मंदिर को बीएसएफ ने अपने नियंत्रण में ले लिया।
आज यहां का सारा प्रबन्ध सीमा सुरक्षा बल के हाथों में है। मन्दिर के अन्दर ही एक संग्रहालय है जिसमें वे गोले भी रखे हुए हैं। पुजारी भी सैनिक ही है। यह मंदिर भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना के फौजियों के लिए भी आस्था का केन्द्र रहा है।
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