हमारे देश भारत में  हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान  शिव वो देव हैं जिन्हें देव की उपाधि भी मिली और साधू सा वैराग्य भी. इस संसार को चलाने वाले अगर विष्णु कहे जाते हैं तो शिव संसार को बैलेंस करते हैं.शिव वो है जो संसार की बुराई से जूझता है, शिव वो है जो जीवन की कठिनाइयों के विष को अमृत समझ कर पी जाता है, शिव वो है जो ‘नीलकंठ’ कहलाता है.

वो मद मस्त है, वो चिंता न कर भी चिंतन कर पाता है, वो निश्छल है, निष्कपट है, तभी तो ‘
बम भोले’ कहलाता है.दुनिया भर में जितने भी शिव भक्त हैं, आपने उन्हें शिव का नाम लेते हुए, ‘भांग’ का सेवन करते हुए देखा और सुना होगा. कई लोग ये तर्क देते हैं, कि शिव भी भांग पीते थे, इसलिए हम भी उनकी तरह बनेंगे, भांग पिएंगे.

भांग पुराने समय से यूज़ की जा रही एक ऐसी ड्रिंक है, जिसे हिन्दू मान्यताओं के अनुसार ‘भगवान के अमृत’ की उपाधि हासिल है. भांग से कई बीमारियों का इलाज संभव है और ये गंभीर चोटों को ठीक करने में सक्षम है. वेदों में भांग को एक ‘Medicinal Plant’ बताया गया है, जो ‘5 पवित्र पौधों में से एक है’.

एक व्यक्ति ने इसका बड़ा अच्छा उदाहरण दिया है कि:जिस तरह सूर्य बिना दूषित हुए मूत्र में से भी पानी खींच लेता है, उसी तरह शिव भी बिना रुके विष के सागर को अपने अंदर समा सकते हैं.वो इतने शक्तिशाली हैं कि भांग या चिलम पी सकते हैं, लेकिन अपना होश कभी नहीं खोएंगे.

कई अघोरी चिलम भांग का सेवन करते हैं, क्योंकि ये माना जाता है कि इससे दिमाग को केंद्रित करने और ध्यानमग्न होने में सहायता मिलती है. हर योगी शिव जैसा बनना चाहता है, लेकिन शिव परम योगी हैं. सवाल ये उठता है कि शिव भांग क्यों पीते थे या इसके पीछे क्या कारण रहा है:

देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन से जो विष निकला, उससे पृथ्वी पर हाहाकार मच गया, इस विष को पीने वाले शिव थे. लेकिन उन्होंने विष को निगला नहीं, बल्कि उसे कंठ में रख दिया, इसलिए वो नीलकंठ कहलाये. ये विष इतना गर्म था कि इससे शिव को बहुत गर्मी हो गयी और फिर उन्हें कैलाश भेजा गया, जहां तापमान हमेशा 0 डिग्री रहता है. शिवलिंग पर बेल-पत्र चढ़ाने का महत्व भी इसलिए है क्योंकि ये ठंडा होता है. ऐसा ही कुछ भांग या चिलम के बारे में भी कहा जाता है. साइंस के नज़रिये से देखने पर आपको ये पता चलेगा कि भांग ‘Coolant’ का काम करता है.

वेदों के अनुसार समुद्र मंथन से एक बूंद मद्र पर्वत पर गिरने से एक पौधा उगा. इस पौधे का रस देवताओं को इतना पसंद आया कि उन्होंने इसका सेवन करना शुरू कर दिया. और बाद में शिव इसे हिमालय में ले आये ताकि हर कोई इसका सेवन कर सके.

भांग को गंगा की बहन कहा जाता है और ये हमेशा गंगा के किनारे ही उगती है. इसीलिए भांग को शिव की जटा पर बसी गंगा के बगल में जगह मिली है.

कहा जाता है कि देवता हमेशा सोमरस का सेवन करते थे और इसी को पाने के लिए असुरों ने उनसे लड़ाई की थी. ये माना जाता है कि सोमरस और भांग दोनों एक ही हैं. हालांकि इस बात की अभी कोई पुष्टि नहीं की गयी है

शिव हमेशा ध्यान में रहते थे, और भांग ध्यान केंद्रित करने के लिए जानी जाती है. इससे वो हमेशा परमानंद में रहते थे और कभी भी ध्यान लगा सकते थे. यही कारण है की कई योगी, अघोरी और साधू चिलम और भांग पीते हैं, ताकि वो भी और अच्छे से ध्यान लगा सकें.

ये सब वो बाते  थीं, जो शिव के भांग पीने से  जुड़ी हैं. इनकी प्रमाणिकता के बारे में किसी को भी ढंग से नहीं पता, लेकिन भगवान  शिव के भांग पीने से ज़्यादा ज़रूरी उनके जीवन को समझना है. भांग उनके जीवन का पहलू कही जा सकती है. भगवान शिव  अभी और भी चमत्कारी बातें  है जिनके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करनी की आवश्यकता है 

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