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भारत के स्वतंत्रता संग्राम के ग़ुमनाम क्रान्तिकारियों को भी कर लें एक बार सलाम!
ये है भारत के वो शहीद जो गुमनामी हो गए आजादी के बाद
जिस प्रकार लोगों को सिर्फ़ महल की खूबसूरती, उसके शानदार छज्जे और सिर्फ़ डिज़ाइन दिखाई देता है, लेकिन जिन नींव के पत्थरों पर वो मकान टिका हुआ हैं वो किसी को नहीं दिखाई देते। सब शानदार छज्जे और बाहरी दिखावा बनना चाहते हैं, कोई बिरला ही होता है जो नींव का पत्थर बनता है। उसी प्रकार हिन्दुस्तान के क्रान्तिकारी उलट थे जिन्होंने देश के आजादी के लिए बलिदान दिया पर किसी को याद नहीं रहे वो , वो सब नींव के पत्थर ही बनना चाहते थे। जानिए कुछ ऐसे ही क्रान्तिकारियों के बारे में जो गुमनामी में खो गए।
जिनमे से एक थी दुर्गा भाभी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रान्तिकारियों की प्रमुख सहयोगी थीं। 19 दिसम्बर 1928 को भगत सिंह ने इन्हीं दुर्गा भाभी के साथ वेश बदल कर कलकत्ता-मेल से यात्रा की थी। दुर्गाभाभी क्रांतिकारी भगवती चरण बोहरा की धर्मपत्नी थीं। पर दुःख की बात है की आज के भारतीय उन्हें भूल गए किसी को उनका नाम भी नहीं पता, दुर्गा भाभी थी कौन क्या योगदान रहा उनका आजादी के इस लड़ाई में भगत सिंह तो याद रहे लेकिन दुर्गा भाभी किसी को याद नहीं रही। ..
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